Manbhavan Kahaniyan

Here you will find the collection of world best inspirational, moral Hindi stories, mythological stories, children stories, short stories and UNDERSTANDING stories, watching which you can learn valuable lessons of life. Such Hindi stories which along with entertainment also serve to teach you a great lesson. We hope that these stories will bring a positive change in your life.

Tuesday, January 24, 2023

दो सखियाँ ~ मुंशी प्रेमचंद(भाग-2) | 2 Sakhiyan ~ Munshi Premchand(Part-2) | Narrated By~Shweta Dhiman

  Manbhavan Kahaniyan       Tuesday, January 24, 2023

गोरखपुर

5-7-25

प्रिय पद्मा,

भला एक युग के बाद तुम्हें मेरी सुधि तो आई। मैंने तो समझा था, शायद तुमने परलोक-यात्रा कर ली। यह उस निष्ठुरता का दंड ही है, जो कुसुम तुम्हें दे रही है। 15 अप्रेल को कॉलेज बंद हुआ और एक जुलाई को आप खत लिखती हैं—पूरे ढाई महीने बाद, वह भी कुसुम की कृपा से। जिस कुसुम को तुम कोस रही हो, उसे मैं आशीर्वाद दे रही हूँ। वह दारुण दु:ख की भांति तुम्हारे रास्ते में न आ खड़ी होती, तो तुम्हें क्यों मेरी याद आती? खैर, विनोद की तुमने जो तस्वीर खींची, वह बहुत ही आकर्षक है और मैं ईश्वर से मना रही हूँ, वह दिन जल्द आए कि मैं उनसे बहनोई के नाते मिल सकूं। मगर देखना, कहीं सिविल मैरेज न कर बैठना। विवाह हिन्दू-पद्धति के अनुसार ही हो। हां, तुम्हें अख्तियार है, जो सैकड़ों बेहूदा और व्यर्थ के कपड़े हैं, उन्हें निकाल डालो। एक सच्चे, विद्वान पण्डित को अवश्य बुलाना, इसलिए नहीं कि वह तुमसे बात-बात पर टके निकलवाये, बल्कि इसलिए कि वह देखता रहे कि सब कुछ शास्त्र-विधि से हो रहा है या नहीं।

अच्छा, अब मुझसे पूछो कि इतने दिनों क्यों चुप्पी साधे बैठी रही। मेरे ही ख़ानदान में इन ढाई महीनों में पाँच शादियाँ हुई। बारातों का तांता लगा रहा। ऐसा शायद ही कोई दिन गया हो कि एक सौ मेहमानों से कम रहे हों और जब बारात आ जाती थी, तब तो उनकी संख्या पाँच-पाँच सौ तक पहुँच जाती थी। ये पाँचों लड़कियाँ मुझसे छोटी हैं और मेरा बस चलता, तो अभी तीन-चार साल तक न बोलती। लेकिन मेरी सुनता कौन है और विचार करने पर मुझे भी ऐसा मालूम होता है कि माता-पिता का लड़कियों के विवाह के लिए जल्दी करना कुछ अनुचित नहीं है। ज़िन्दगी का कोई ठिकाना नहीं। अगर माता-पिता अकाल मर जाएं, तो लड़की का विवाह कौन करे? भाइयों का क्या भरोसा? अगर पिता ने काफ़ी दौलत छोड़ी है, तो कोई बात नहीं; लेकिन जैसा साधारणत: होता है, पिता ऋण का भार छोड़ गये, तो बहन भाइयों पर भार हो जाती है। यह भी अन्य कितने ही हिन्दू-रस्मों की भांति आर्थिक समस्या है, और जब तक हमारी आर्थिक दशा न सुधरेगी, यह रस्म भी न मिटेगी।

अब मेरे बलिदान की बारी है। आज के पंद्रहवें दिन यह घर मेरे लिए विदेश हो जायेगा। दो-चार महीने के लिए आऊंगी, तो मेहमान की तरह। मेरे विनोद बनारसी हैं, अभी क़ानून पढ़ रहे हैं। उनके पिता नामी वकील हैं। सुनती हूँ, कई गाँव हैं, कई मकान हैं, अच्छी मर्यादा है। मैंने अभी तक वर को नहीं देखा। पिताजी ने मुझसे पुछवाया था कि इच्छा हो, तो वर को बुला दूं। पर मैंने कह दिया, कोई ज़रूरत नहीं। कौन घर में बहू बने, है तकदीर ही का सौदा। न पिताजी ही किसी के मन में पैठ सकते हैं, न मैं ही। अगर दो-एक बार देख ही लेती, मुलाकात ही कर लेती, तो क्या हम दोनों एक-दूसरे को परख लेते? यह किसी तरह संभव नहीं। ज़्यादा-से-ज़्यादा हम एक-दूसरे का रंग-रूप देख सकते हैं। इस विषय में मुझे विश्वास है कि पिताजी मुझसे कम संयत नहीं हैं। मेरे दोनों बड़े बहनोई सौंदर्य के पुतले न हों, पर कोई रमणी उनसे घृणा नहीं कर सकती। मेरी बहनें उनके साथ आनंद से जीवन बिता रही हैं। फिर पिताजी मेरे ही साथ क्यों अन्याय करेंगे। यह मैं मानती हूँ कि हमारे समाज में कुछ लोगों का वैवाहिक जीवन सुखकर नहीं है, लेकिन संसार में ऐसा कौन समाज है, जिसमें दुखी परिवार न हों। और फिर हमेशा पुरुषों ही का दोष तो नहीं होता, बहुधा स्त्रियाँ ही विष की गांठ होती हैं। मैं तो विवाह को सेवा और त्याग का व्रत समझती हूँ और इसी भाव से उसका अभिवादन करती हूँ। हाँ, मैं तुम्हें विनोद से छीनना तो नहीं चाहती, लेकिन अगर 20 जुलाई तक तुम दो दिन के लिए आ सको, तो मुझे ज़िला लो। ज्यों-ज्यों इस व्रत का दिन निकट आ रहा है, मुझे एक अज्ञात शंका हो रही है; मगर तुम खुद बीमार हो, मेरी दवा क्या करोगी—ज़रूर आना बहन!

तुम्हारी,

चंदा

 

इस कहानी को यूट्यूब पर देखने के लिए क्लिक करें :- https://youtu.be/S79fJelEa0s

 


 


logoblog

Thanks for reading दो सखियाँ ~ मुंशी प्रेमचंद(भाग-2) | 2 Sakhiyan ~ Munshi Premchand(Part-2) | Narrated By~Shweta Dhiman

Previous
« Prev Post

No comments:

Post a Comment